विष्णुपद-मंदिर-के-बारे-मे
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विष्णुपद मंदिर के बारे में जानिए पूर्ण जानकारी जानिए। तथा पितृपक्ष में पिंड दान करने का क्या महत्व है। गयासुर का अंत कैसे हूआ।

विष्णुपद मंदिर ⇒ विष्णुपद मंदिर भारत के बिहार राज्य के गया जिले में स्थित है जो कि यहां पिंडदान के प्रसिद्ध भूमि है। यहां पिंड दान करने के लिए लोग बहुत दूर-दूर से लोग यहां पिंडदान करने आते हैं। विष्णुपद के गया में बहुत सारे विदेशी यात्री पिंडदान करने आते है और अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करते है। विष्णुपद मंदिर गया

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विष्णुपद मंदिर की स्थापना सन 1787 ईस्वी में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने जयपुर की प्रसिद्ध स्थापत्यकारों को बुलाकर विष्णुपद मंदिर की स्थापना करवाई थी। जो गया कि पूर्वी भाग में स्थित है,और यह स्टेशन से लगभग 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। विष्णुपद मंदिर की ऊंचाई 100 फीट तथा मंण्डप की ऊंचाई 50 वर्ग फीट है। भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के कारण ही इसका नाम विष्णुपद रखा गया है। यह चरण चिन्ह 13 इंच लंबा है। जो पंडा के द्वारा बताया गया है की यह चरण विष्णु भगवान का है। विष्णुपद मंदिर के ऊपर एक झंडा है। जिसका वजन 1.25 किलोग्राम सोना का झंडा बना हुआ है। विष्णुपद मंदिर में एक गुप्त दरवाजा है जो मुख्य द्वार के बाएं तरफ है।

  • चोरों की व्याख्या – कहा जाता है कि इस झंडे को चुराने के लिए एक चोर ऊपर चढ़ा था बल्कि वह झंडे को चुरा नहीं पाया और वह नीचे गिर के पत्थर बन गया था। उस चोर का पत्थर अभी भी वहाँ पे मौजूद है।
  • विष्णु घड़ी :- मंदिर में एक विष्णु घड़ी है जिसे सूर्य घड़ी भी कहा जाता है। यह घड़ी सूर्य के प्रकाश के साथ चलकर उसकी छाया से समय बताती है और यह घड़ी विष्णुपद मंदिर परिसर में ही स्थित है ,जो बहुत बड़ा है। विष्णुपद मंदिर गया
    विष्णुपद मंदिर
  • चांदी का छत्र विष्णु चरण के ठीक ऊपर एक चांदी की छतरी है। जिसका वजन 50 किलोग्राम है। उसके लिए पंडा बाल गोविंद जी ने दान दिया और वह उन्हीं के द्वारा लगाया गया है तथा विष्णुपद मंदिर के मुख्य द्वार के दाएं तरफ एक शिव जी का मंदिर है। गया में 54 वेदी है जिसमें पांच वेदी में सिर्फ ब्राह्मण ही बैठ सकते है।

16 खंभा ⇒ विष्णुपद मंदिर परिसर में 16 खंभा है। जिसे 16 पद भी कहा जाता है उन पदों के नाम गणेश पद, कार्तिक पद, सूर्य पद, कश्यप पद, मतंग पद, कौंच पद, दक्षिणागि्न पद, अगसत्य पद, चंद्र पद, सूर्य पद, कश्यप पद, भातगपद, दधी पद, कण्व पद, काव्य पद, शिव पद ।

 

सूर्य कुंड व्याख्या ⇒ सूर्य कुंड में पांच वेदी का पिंडदान होता है। इस कुंड के अंदर सात कुँआ है। उसमें एक सम्भू नाम का कछुआ रहता है। इस कुंड में जड़ी बूटी का पानी है।

सूर्य कुंड

दरगाह ⇒ विष्णु पद मंदिर के पास एक दरगाह है। जहाँ धर्मो को सबसे अच्छी परिभाषा दी गयी है। इस दरगाह के अंदर एक मंदिर भी है। जहाँ सभी धर्मो के लोग जाते है अगर किसी शव को आप अंतिम संस्कार करने ले जाते है तो लोग पहले उसे ठहराव और नमन जरूर करते है। यहाँ कोई जाति भेद नहीं होता यहाँ हमें सबका मालिक एक होने का संदेश देता है जो कि यह बताता है कि परमात्मा एक ही है वह दरगाह में या लिखा था विष्णु रूप नानक गुरु शिव रूप हरिश्चंद्र जो बजे एक कोर रहे परम आनंद उस दरगाह के पास कोई भी लाश जाता है तब दरगाह के नीचे रखकर जाता है। विष्णुपद मंदिर गया

पितृपक्ष में पिंड दान करने का क्या महत्व है
पितृपक्ष मेला आप ने तो बिहार में स्थित गया तीर्थ के बारे में तो सुना ही होगा। जिसे हिंदू धर्म में मोक्ष स्थली भी कहा जाता है, और यही कारण है कि देश और दुनिया के अलग-अलग भागों से लाखों हिंदू गया में आकर अपने परिवार की मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, दर्पण और पिंडदान करते हैं।

पितृपक्ष मेला

ऐसा माना जाता है कि गया धाम में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों तक का उद्धार हो जाता है।

108 कुल और 7 पीढ़ियों तक का उद्धार

♦ गरुड़ पुराण में गया को विश्व में पितरों की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल माना गया है। वैसे तो गया जी में पूरे साल पिंड दान किया जाता है लेकिन पितृपक्ष के दौरान पिंड दान करने का एक अलग महत्व ही हिंदू शास्त्रों में बताया गया है।

गयासुर का अंत ⇒

गयासुर का अंत

मान्यता के अनुसार इस शहर में एक विशाल तपस्वी का राक्षस गयासुर रहता था। जो कि इतना पवित्र था कि अगर कोई व्यक्ति उसे स्पर्श कर दें तो वह जीते जी स्वर्ग में चला जाता था। हर व्यक्ति उस पवित्र दानव को छुना चाहता था, और स्वर्ग में जाना चाहता था। क्योंकि सारे लोग अपनी मृत्यु के पहले ही स्वर्ग में जाने लगे तभी स्वर्ग और देवता लोग अधिक बढ़ती आबादी के कारण परेशान हो गए सभी लोग चिंता में पड़ गए हैं कि अब क्या किया जाए तभी विष्णु भगवान को आदेश दिया गया कि उसे इज्जत पूर्वक समाप्त किया जाए यह एक ऐसा पवित्र दानव था। जिससे ना जमीन पर और ना ही आसमान में मारा जा सकता है। विष्णु जी जब धरती पर आए तो देखें हर तरफ गंदगी पड़ी हुई है और गयासुर इतना पवित्र था कि उसका दाल दाल में लेने के लिए कोई पवित्र जगह पर हवन पर हवन करना पड़ता और उन्हें धरती पर हवन करने के लिए कोई पवित्र जगह नहीं मिली तो भगवान विष्णु ने सोचा कि गयासुर के शरीर से पवित्र और क्या हो सकता है। तभी विष्णु जी ने गयासुर से उसका शरीर दान करने को कहा। गयासुर भगवान विष्णु के दर्शन पाकर धन्य हो गया और खुशी से अपना शरीर दान में देने के लिए तैयार हो गया पर मंजूरी के साथ उसने अपनी तीन र्शत रखा तभी वह अपना शरीर दान में देगा।

1. उस शहर उस भूमि का नाम उसके नाम से होना चाहिए ताकि वह हमेशा के लिए वह अपने नाम से जीवित रहे।

2. यहां पर हर रोज एक मृत शरीर का अंतिम संस्कार हो।

3. इस भूमि पर केवल पिंडदान हो और हर रोज एक पिंडदान हो भगवान विष्णु ने उसकी सारी शर्तें स्वीकार कर ली और उसके शरीर पर हवन करने लगे जब हवन होने लगा तब जव्लन के कारण वह हिलने और झटपटाने आने लगा तभी वह हवन में बंधला रहा था। हवन संपूर्ण करने के लिए विष्णु भगवान ने उन्हें पवित्र राक्षस गयासुर को अपने दाहिने पैर के अंगूठे से उन्हें जमीन के नीचे हमेशा के लिए दवा दिया और हवन समाप्त कर उसका शरीर दान में ले गए तभी से गया एक पवित्र स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गया और यहां दूर-दूर से लोग पिंडदान करने आने लगे।

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Nawal kishor
मैं नवल किशोर हूं. मैं Techkishor.com पर एक ब्लॉगर और सामग्री निर्माता हूं। मेरे पास सरकारी नौकरियों के अपडेट, सरकारी योजनाओं, नवीनतम समाचार अपडेट, तकनीकी रुझान, खेल, गेमिंग, राजनीति, सरकारी नीतियों, वित्त आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों में वर्तमान घटनाओं का अनुभव है।
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